जुड़ शीतल – मानव और प्रकृत्ति को जोड़ता पर्व, जो देता है प्रकृति की सेवा का अनोखा उदाहरण

जुड़ शीतल
वैसे तो हमारे देश में ज़्यादातर त्यौहार हमें प्रकृति से प्रेम करना और पशुओं को दुलार करना सिखाते हैं। मगर एक त्यौहार ऐसा भी है जो खासकर के प्रकृति की सेवा करने और पशु पक्षियों का ख़ास ख्याल रखने का सन्देश हमें देता है। जी हां, मिथिलांचल में आज जुड़ शीतल का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। जुड़ शीतल का अर्थ होता है आपका जीवन शीतलता से भरा रहे। जुड़ शीतल पर्व मिथिला की संस्कृति का प्रतीक है। सबसे ख़ास बात ये है कि इस त्यौहार में इंसान से लेकर पशु पक्षी और पेड़-पौधों का भी ख्याल रखा जाता है। ये पर्व मानव और प्रकृति से जुड़ा है। इस त्यौहार की सबसे अच्छी बात ये है कि आज के दिन ग्रामीणों के द्वारा जल संरक्षण पहल से लेकर पेड़-पौधों की सेवा की जाती है। मिथिला में एक दिन चूल्हा बंद करने की परम्परा के पीछे कोई अंधविश्वास नहीं बल्कि इसका मकसद ये है ताकि वातावरण को आज चूल्हे से उठने वाले धुंए और ताप से बचाया जा सके। यही नहीं इस दिन पेड़-पौधों की के आसपास सफाई की जाती है। इसके बाद कुआं, तालाब, मटका, पानी टंकी की सफाई करने की भी परम्परा है। जुड़ शीतल पर्व फसल के प्रति आभार प्रकट करने और भरपूर बारिश और अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करने के लिए मनाया जाता है। जुड़ शीतल के दिन पितरों के लिए जल से भरे मिट्टी के पात्र लटकाए जाते हैं। इस दिन अनाज, सब्जी, फल दान देने की भी परंपरा है।
दरअसल मिथिलावासी सतुआनी के बाद अगले दिन जुड़ शीतल मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन से नए साल की शुरुवात हो जाती है। ये ऐसा त्यौहार होता है जो सिर्फ इंसानों का ही नहीं बल्कि प्रकृति और पशु पक्षियों का भी माना जाता है। बीते कल जहां लोगों ने सतुआनी का त्यौहार मनाया तो वहीं आज धुड़खेल और शिकारमारी की रस्म पूरी की गई। इस दिन अपने कुल देवी देवता को बासी बरी, चावल, दही, आम की चटनी चढ़ाने की परम्परा भी निभाई जाती है। यही नहीं जुड़ शीतल के दिन घर के बड़े बुजुर्ग घरवालों के सर पर बासी जल डाल कर उन्हें शीतल रहने का आशीर्वाद देते हैं। साथ ही इस दिन किसी घर में चूल्हा नहीं जलता है बल्कि एक दिन पहले बने बासी खाने से चूल्हे की पूजा की जाती है और वही खाना पूरा परिवार खाता है। इस दिन परिवार के सभी सदस्य मिलकर सत्तू खाते हैं। इस दिन पौधों को पानी डालकर भी उनका दुलार किया जाता है। साथ ही सालों से एक दूसरे को कीचड़ लगाकर कई जगह कुश्ती खेलने का भी आयोजन होता है। मगर अब इस तरह की परम्पाराओं का लगभग अंत सा हो गया है।