जलवायु के अनुकूल खेती प्रोग्राम के लिए बिहार को राशि आवंटित

jalwayu parivartan
कृषि रोड मैप के अंतर्गत बिहार सरकार ने ‘‘जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम’’ योजना को लेकर वित्तीय वर्ष 2019-20 से वित्तीय वर्ष 2023-24 तक कुल 6065.50 लाख रुपये राशि को स्वीकृति दे दी है। इस वित्तीय वर्ष में इसके लिए 1393.90 लाख रू० की निकासी एवं व्यय की स्वीकृति दी मिली है। लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन को देखते हुए बिहार ने जलवायु के अनुकूल किसानी के लिए यह कदम उठाया है। इस बारे में जानकारी देते हुए बिहार के कृषि मंत्री डॉ. प्रेम कुमार ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पूरे विश्व में एक समस्या है। इसके फलस्वरूप वायुमंडल के तापमान में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। जलवायु परिवर्तन का असर मानव जीवन के विभिन्न आयामों पर भी पड़ रहा है, कृषि पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है क्योंकि भारत के अधिकतर राज्यों में खेती जलवायु पर ही निर्भर करती है।
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जलवायु परिवर्तन का असर कृषि पर भी दिख रहा है
उन्होंने कहा कि बिहार में जलवायु परिवर्तन का असर पिछले कुछ वर्षों में स्पष्ट रूप से दिख रहा है। यहां पर होनेवाली वर्षा में भी कमी आई है, तथा मॉनसून का व्यवहार अत्यंत ही असामान्य दिखने लगा है। ज्यादा गर्मी और ज्यादा ठंड वाले दिनों की आवृत्ति बढ़ गई है। बाढ़ एवं सूखे की परिस्थिति से किसानों को लगभग प्रतिवर्ष जूझना पड़ रहा है। राज्य में खरीफ मौसम में धान यहां की प्रमुख फसल है। परन्तु मॉनसून की अनियमितता के कारण विगत वर्षों में धान की सामान्य रूप से खेती करने में किसानों को कठिनाई हो रही है। ऐसा महसूस किया जाने लगा है कि किसानों के द्वारा वर्तमान में अपनाई जाने वाली फसल चक्र/तकनीक को बदलने की आवश्यकता है। नहीं तो भविष्य में खाद्य सुरक्षा को बनाये रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में कई कृषि परियोजनाओं पर जोर
डॉ० कुमार ने कहा कि कृषि रोड मैप 2017-22 में जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में विशिष्ट परियोजना के कार्यान्वयन पर जोर दिया गया है। राज्य में स्थित कृषि अनुसंधान संस्थानों तथा बोरलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साउथ एशिया, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, पटना के द्वारा जलवायु परिवर्तन के लिए नये फसल चक्र/तकनीक का विकास किया गया है, जो जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को कम करने में सक्षम है। अनुसंधान संस्थानों के द्वारा नये फसल चक्र के रूप में धान-गेहूँ-मूँग/ मक्का-गेहूँ-मूँग/ मक्का-सरसों-मूँग/ मक्का-मसूर-मूँग/ सोयाबीन-गेहूँ-मूँग/ सोयाबीन-रबी मक्का आदि का फसल चक्र तैयार किया गया है, जिसे अपनाकर किसान अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
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उन्होंने कहा कि इन फसल चक्रों को अपनाकर 12 टन प्रतिवर्ष उपज प्राप्त किया जा सकता है, जबकि वर्तमान में किसानों द्वारा अपनायी जा रही फसल चक्र से औसतन 5 टन प्रतिवर्ष का ही उपज प्राप्त होता है। इस फसल चक्र को अपनाने से किसानों को जलवायु परिवर्तन की समस्याओं से भी काफी हद तक निजात मिलेगी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के कई सहयोगी संस्थाओं ने ऐसी किस्में ईजाद की हैं जो कि सूखे और बाढ़ दोनों स्थितियों में निपटने में कारगर है। ऐसी स्थिति में किसानों यदि जलवायु परिवर्तन से निपटने के साथ-साथ फसल उत्पादन बढ़ाना है तो इसके लिए किसानों को फसल चक्र में बदलाव करने पड़ेंगे।