October 2, 2023

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लाल बहादूर शास्त्री जयंती – तो इसलिए शास्त्री ने रद्द करवाया था बेटे का प्रमोशन..

लाल बहादूर शास्त्री जयंती
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पूरे देश में जहां एक ओर हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाई जा रही हैं। तो वहीं दूसरी ओर हमारे देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादूर शास्त्री की 115वीं जयंती पर भी लोगों का उत्साह देखने को मिल रहा हैं। जहां महात्मा गांधी को लोग उनकी अंहिसावादी छवि के लिए याद रखते हैं, तो वहीं लाल बहादूर को आज भी उनकी सीधी सरल, और सच्ची छवि के लिए याद किया जाता है।

आज हमारे देश के दूसरे प्रधानमंत्री यानी कि लाल बहादूर शास्त्री के 115वें जन्मदिवस के मौके पर हम आपको बतायेंगे उनके जीवन के ईमानदारी और सादगी भरे कुछ अनकहे किस्से…

  1. अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान बनारस के हरिशचंद्र इंटर कॉलेज में लाल बहादूर शास्त्री के हाथों से साइंस प्रैक्टिकल में इस्तेमाल होने वाला बीकर छूट गया। जिसके टूटने के कारण स्कूल के चपरासी देवीलाल ने उन्हें थप्पड़ भी मारा, और जब रेल मंत्री बनने के बाद 1954 में एक कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचे शास्त्री मंच पर थे, तो देवीलाल उनको देखते ही वहां से हट गए, मगर शास्त्री जी ने उन्हें पहचान लिया, और देवीलाल को मंच पर बुलाकर उन्हें गले लगा लिया।
  2. लाल बहादुर शास्‍त्री जन्‍म से ही जाति प्रथा के घोर विरोधी थे, इसलिए उन्‍होंने कभी भी अपने नाम के साथ अपना सरनेम नहीं लगाया. आपको बता दें कि, उनके नाम के साथ लगी ‘शास्‍त्री’ की उपाधि उन्‍हें काशी विद्यापीठ की तरफ से मिली थी.
  3. बनारस में पैदा हुए शास्‍त्री का स्‍कूल गंगा की दूसरी तरफ था, उनके पास गंगा नदी पार करने के लिए फेरी के पैसे नहीं होते थे, इसलिए वह दिन में दो बार अपनी किताबें सिर पर बांधकर तैरकर नदी पार करते थे और स्कूल जाते थे.
  4. कहा जाता है कि, शास्त्री फटे कपड़ों से बाद में रुमाल बनवाते थे। फटे कुर्तों को कोट के नीचे पहनते थे. इस पर जब उनकी पत्नी ने उन्हें टोका, तो उनका कहना था कि देश में बहुत ऐसे लोग हैं, जो इसी तरह गुजारा करते हैं.
  5. लाल बहादुर शास्‍त्री, बापू को अपना आदर्श मानते थे। उन्‍हें खादी से इतना लगाव था कि अपनी शादी में दहेज के तौर पर उन्‍होंने खादी के कपड़े और चरखा लिया था।
  6. शास्‍त्री सादा जीवन में विश्‍वास रखते थे. प्रधानमंत्री होने के बावजूद उन्‍होंने अपने बेटे के कॉलेज एडमिशन फॉर्म में अपने आपको प्रधानमंत्री न लिखकर सरकारी कर्मचारी लिखा. उन्‍होंने कभी अपने पद का इस्तेमाल परिवार के लाभ के लिए नहीं किया.
  7. उनकी सादगी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकता है कि, उनके बेटे ने एक आम इंसान के बेटे की तरह रोजगार के लिए खुद को रजिस्‍टर करवाया था. एक बार जब उनके बेटे को गलत तरह से प्रमोशन दे दिया गया, तो शास्‍त्री जी ने खुद उस प्रमोशन को रद्द करवा दिया।

आज के वक्त में जहां नेता बनते ही अच्छे अच्छों को तेवर बदलने लगते हैं, कूर्सी तक पहुंचने के लिए नेता न जाने क्या-क्या पैतरें अपनाते है… जनता से ना जाने कितने ही झूठे वादे करते हैं… और कूर्सी पर बैठने के बाद गिरगिट की तरह अपने रंग बदलना शुरू कर देते हैं। आज के वक्त में लाल बहादूर शास्त्री जैसे नेताओं की उम्मीद करना भी व्यर्थ है… भ्रष्टाचार से भरी राजनीति के बीच नेता केवल अपने मतलब से ही जनता का इस्तेमाल करती हैं… और फिर काम होने के बाद किसी कचरे की तरह उसे बाहर निकाल कर फेंक देते हैं.. लाल बहादूर शास्त्री को आज भी उनकी इमानदारी, सादगी, और भ्रष्टमुक्त नेता होने के लिए याद किया जाता हैं।

 

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