New Delhi: Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal sings a patriotic song during the 72nd Independence Day celebrations at Chhatrasal Stadium, in New Delhi, on Wednesday, Aug 15, 2018. (PTI Photo/Arun Sharma)(PTI8_15_2018_000237B)
Sharing is Caring!
Post Views:14
छत्तीसगढ़ चुनाव इस वक़्त चर्चाओं में हैं। सभी पार्टियां सत्ता पाने की चाहत में पूरी कोशिश में जुटी हुई हैं। पार्टियां आपस में तो एक दूसरे के लिए ख़तरा हैं ही मगर नोटा भी राजनितिक पार्टियों के लिए कम खतरा नहीं हैं। क्योंकि नोटा छत्तीसगढ़ में 2013 के चुनावों को पहले ही प्रभावित कर चूका है ऐसे में सभ्य पार्टियों को डर है कि कहीं इस बार भी जनता उनसे ज्यादा नोटा पर भरोसा ना दिखाए। वैसे तो आप सभी जानते ही होंगे कि आखिर ये नोटा है क्या मगर फिर भी हम आपको बता देते हैं कि आखिर ये नोटा है क्या इसकी शुरुवात कब हुई और पार्टियों के लिए ये किस हद तक हानिकारक है।
दरअसल, मान लीजिए कि आपको किसी पार्टी का कोई उम्मीदवार पसंद न हो और आप उनमें से किसी को भी अपना वोट देना नहीं चाहते हैं तो फिर आप क्या करेंगे। शायद आप वोट देने के लिए घर से निकले ही ना। मगर यानी अब चुनावों में आपके पास एक और विकल्प होता है कि आप इनमें से कोई नहीं का भी बटन दबा सकते हैं। यानी आपको इनमें से कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है। इसलिए मतदान करते समय सबसे आखिरी में नोटा का विकल्प दिया गया होता है। जिसे आप दबा कर ये दिखा सकते हैं कि आप और आप जैसे कई लोगों को किसी भी पार्टी पर भरोसा नहीं है और आपने अपना वोट एक तरह से किसी को भी नहीं दिया है।
इसलिए नोटा का इस्तेमाल किया जाता है और इसलिए नोटा को पार्टियां अपने लिए खतरा भी मानती हैं। जब नोटा की व्यवस्था हमारे देश में नहीं थी, तब चुनाव में अगर किसी को लगता था कि उनके अनुसार कोई भी उम्मीदवार योग्य नहीं है, तो वह वोट नहीं करता था और इस तरह से उनका वोट जाया हो जाता था। ऐसे में मतदान के अधिकार से लोग वंचित हो जाते थे. यही वजह है कि नोटा के विकल्प पर गौर फरमाया गया ताकि चुनाव प्रक्रिया और राजनीति में शुचिता कायम हो सके।
दरअसल, भारत निर्वाचन आयोग ने दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में इनमें से कोई नहीं मतलब नोटा यानि None of the above, or NOTA बटन का विकल्प उपलब्ध कराने के निर्देश दिए।
भारत के अलावा दुनिया के कई देशों में यह पहले से प्रचलित है।
-इनमें कोलंबिया, यूक्रेन, ब्राजील, बांग्लादेश, फिनलैंड, स्पेन, स्वीडन, चिली, फ्रांस, बेल्जियम, यूनान आदि देश शामिल हैं। रूस में 2006 तक यह विकल्प मतदाताओं के लिए उपलब्ध था।
-पाकिस्तान में भी इस विकल्प का प्रावधान किया गया था, लेकिन बाद में वहां के निर्वाचन आयोग ने इसे रद्द कर दिया।
-माना जाता है कि मतपत्र में ‘नोटा’ का पहली बार प्रयोग 1976 में अमेरिका के कैलिफोर्निया में इस्ला विस्टा म्युनिसिपल एडवाइजरी काउंसिल के चुनाव में हुआ था।
अब देखना होगा कि इस बार छत्तीसगढ़ की राजनीति में जनता नोटा को चुनती है या फिर उस सरकार को जो वाकई जनता के लिए गंभीर है।
Grameen News के खबरों को Video रूप मे देखने के लिए ग्रामीण न्यूज़ के YouTube Channel को Subscribe करना ना भूले ::