राजनीति के मोड़ पर ‘अटल’ रहे वाजपेयी, जानिए उनके अटल रहने की कहानी

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को हुआ था… और आज उनका चौरानवे वां जन्म दिन हैं…. वाजपेयी की अपने विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति में अच्छी खासी रुचि थी, जिसके परिणाम स्वरूप वे आगे चलकर भारत के प्रधानमंत्री बने…
पूर्व प्रधानमंत्री अटल ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत साल उन्नीस सौ बयालीस में भारत छोड़ो आंदोलन के जरिए की थी… इसमें शामिल होने के बाद जब वाजपेयी का कद बढ़ा तो उन्होंने साल 1951 में RSS के सहयोग से जनसंघ नाम से एक नई पार्टी बनाई। जिसमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे बड़े नेता भी शामिल हुए। अटल बिहारी वाजपेयी इतने से कहां संतुष्ट होने वाले थे।
वाजपेयी ने इसके बाद एक बाद एक कर 9 बार लोकसभा चुनाव जीता। हालाकि उन्हें इस बीच साल उन्नीस सौ बासठ से उन्नीस सौ सड़सठ तक और उन्नीस सौ छियासी में राज्यसभा भी भेजा गया। धीरे-धीरे सक्रिय राजनीति में अपनी पैठ बनाने के बाद आखिर साल उन्नीस सौ छियानवे में वह समय आ गया था, जब वाजपेयी के हाथ में भारत की कमान आई। वह पहली बार 16 मई उन्नीस सौ छियानवे को भारत के प्रधानमंत्री चुने गए।
हालांकि उनका यह पहला कार्यकाल ज्यादा लंबा नहीं चला और लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से मात्र 13 दिनों में ही यानी 31 मई उन्नीस सौ छियानवे को उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि वे इसके बाद भी नहीं थके और न ही रुके। एक बार फिर से वह साल उन्नीस सौ अट्ठानवे में भारत के प्रधानमंत्री बने। हालांकि उनकी यह सरकार बहुमत वाली नहीं थी, उन्हें अपनी सरकार बनाने के लिए सहयोगी दलों का समर्थन लेना पड़ा था। जिसका परिणाम यह हुआ कि 13 महीनों तक सरकार चलने के बाद सभी सहयोगी दलों ने अपना समर्थन वापस ले लिया। जिस कारण से वह एक बार फिस से उन्हें इस पद से इस्तीफा देना पड़ गया।
लेकिन वाजपेयी अपने रास्ते पर अटल रहे और साल 1999 में वह समय आ गया, जब एक बार फिर से वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री बने और इसके साथ ही वह भारत में 5 साल का कार्यकाल पूर्ण करने वाले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी बने। उन्होंने अपने इस कार्यकाल के दौरान भारत के हित में कई महत्वपूर्ण कार्य किए और एक नए भारत का निर्माण करने की कोशिश की लेकिन फिर भी साल 2004 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा।
साल 2004 में मिली हार के बाद से ही वाजपेयी राजनीति से दूर होते चले गए और एक समय ऐसा आया, जब वे सियासी पटल से गायब ही हो गए। वहीं बढ़ते बुढ़ापे और बीमारी के चलते उन्हें डॉक्टरों की सलाह के बाद घर पर ही रहना पड़ा। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के द्वारा किए गए देशहित के कार्यों के लिए ही उन्हें साल 2015 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित भी किया गया। उस दौरान वाजपेयी चलने की हालत में भी नहीं थे। जिस कारण से तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें उनके आवास पर जाकर ही यह सम्मान दिया। अब वाजपेयी हमारे बीच में नही रहें… पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की तिरानवे साल की उम्र में 16 अगस्त 2018 को दिल्ली के AIIMS हॉस्पिटल में निधन हो गया था…. आज भी देश उनको याद कर रहा है….