जातिवाद के खिलाफ महागठबंधन बीजेपी को हराने की कर रही हैं तैयारी

21 वीं सदी के भारत में भी जातिवाद अपनी जगह बनाए हुए हैं लोकसभा चुनाव 2019 में चाहे NDA हो या महागठबंधन दोनों ही जातिवाद की राजनीति से उबर नहीं पा रहे हैं। बिहार उन बड़े राज्यों में से एक है जहां महागठबंधन बीजेपी को हराने के लिए कमर कस चुका है, और बिहार में दोनों ही दल जाति के गणित को लेकर सावधान दिख रहे हैं। जहां एक तरफ भाजपा के उम्मीदवारों की सूची में उच्च जातियों और अन्य पिछड़ों को अधिक महत्व दिया गया है तो जदयू अत्यंत पिछड़े वर्गों और कुर्मी-कोइरी समूह से समर्थन हासिल करने के प्रयास में लगा है। जबकि भाजपा के पास अनुसूचित जातियों के बीच आधार माना जाता है…
वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन यादव, मुसलमानों और कुछ हद तक दलितों का समर्थन हासिल है। हालांकि कांग्रेस और रालोसपा कुर्मी-कोइरी और सवर्ण वोटरों में भी अपनी पैठ बना सकती है जो कि एनडीए का आधार माना जाता है। दिलचस्प है कि बिहार में लोकसभा चुनाव के 18 महीने के बाद ही विधानसभा चुनाव होने की उम्मीद है और क्षेत्रीय धुरंधरों के हिसाब से लोकसभा चुनाव से यह साबित हो जाएगा कि बहार की अगली सरकार पर कौन काबिज होने वाला है। बिहार की राजनीति का फैसला भी ऐसे में जब क्षेत्रीय दल अपनी कमान अगली पीढ़ी के नेतृत्व को सौंप चुके हैं। फिर चाहे वह राजद के लालू प्रसाद यादव हो या लोजपा के राम विलास पासवान…
फिलहाल 40 संसदीय सीटों वाले बिहार में 11 अप्रैल से चुनाव होने हैं ऐसे में पूरे देश की निगाहें बिहार पर टिकी हैं जहां खासकर गठबंधन की स्थिति साल 2014 के आम चुनाव के मुकाबले जबरदस्त ढंग से बदल चुकी है। आपको बता दें कि बिहार में चुनाव 7 चरणों में होंगे पहला चरण 11 अप्रैल, दूसरा चरण 18 अप्रैल, तीसरा चरण 23 अप्रैल, चौथा चरण 29 अप्रैल, पांचवा चरण 6 मई, छठा चरण 12 मई, सातवां चरण 19 मई, को होगा और नेताओं के भविष्य का फैसला होगा जनता के हाथों में होगा…