बनारस हिंदू विशविद्यालय के छात्रों के साथ मिलकर गांव की महिलाओं ने शुरू की ग्रीन पहल

बनारस हिंदू विशविद्यालय के छात्रों के साथ मिलकर गांव की महिलाओं ने शुरू की ग्रीन पहल आज हर कोई अपने लिए कुछ न कुछ करना चाहता हैं मगर अपनी दौड़ में वो श्याद समाज से कट जाता या फिर उसे भूल जाता हैं। आज हम बात करेंगे ऐसे युवा छात्रों कि जिनकी एक समाज के प्रति छोटी सी पहल ने कई महिलाओं की जींदगी संवार दी। ये कहानी हैं बनारस हिंदू विशविद्यालय के उन छात्रों की हैं।जिनकी एक “ होप ” समाज में आज जागरुकता फैला रही हैं। जिसकी शुरुवात होती 2015 में बनारस के एक गंगा घाट से, जंहा होप के अध्यक्ष रवि मिश्रा अपने साथीयों के साथ जन्मदिन की पार्टी मना वापिस लौट रहे थे। तभी उनकी नज़र एक कूड़े के ढेर पर पढ़ी जंहा कुछ बच्चे व महिलाऐ खाना ढूंढ़ रहे थे और वही जानवर भी अपना खाना ढूंढ रहे थे। जिसे देख उन्हें काफी धक्का लगा और तभी से उन्होंने गरीबों के लिए कुछ करने की सोची। तो फिर क्या था… कुछ बनारस हिंदू विशवविद्यालय के छात्रों ने मिलकर एक होप नाम की संस्था बनाई।
जिसमें बीएचयू के साथ काशी विद्यापीठ, दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र और प्रोफेसर भी जुड़ गए।मकसद सिर्फ इतना कि बेसहारओं का सहारा बनना, ये छात्र हर गांव ,हर गली, हर नुक्कड़ पर जा -जा कर लोगो से मिले उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरुक करना शुरु किया और इनके एक प्रयास ने एक ग्रीन ग्रुप की महिलाओं का गठन किया, ये उन महिलाओं का ग्रुप हैं, जो एक समूह बना कर गांव में निकलती हैं और जुए और शराब जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अभियान छेड़ती हैं।होप ने गांव में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उन्हे घर से निकाल कर उन्हे उनके अधिकारों के बारे में बताया, अक्षर ज्ञान के साथ -साथ हस्ताक्षर करने के बारे में बताया, बेसिक पढाई-लिखाई के साथ आत्मरक्षा के लिए कराटे जैसे क्लासेस भी दिए गए और महीने भर की ट्रेनिंग के बाद एक टेस्ट के माध्यम से उनमें से 25 का चुनाव कर, उन्हें हरी साड़ियां देकर ग्रीन ग्रुप को तैयार कर दिया , जिसे बाद में स्थानीय पुलिस अधिकारियों ने पुलिस मित्र की जिम्मेदारी सौंप दी। ये महिलाऐं आज घर –घर जाकर बरसों से जुए और शराब के नशे में डूबे लोगों को समझाती हैं। बता दें समूह से विश्वविद्यालयों के प्रोफ़ेसर भी जुड़े हैं, जो गावों में कैंपआयोजित करते हैं और जरूरत पड़ने पर इन छात्रों की मदद भी करते हैं। समूह के कामों का खर्च छात्रों के जेब खर्च से ही चलता है इसलिए इनका अभियान अभी कुछ गाँवों तक ही सीमित है।अगर ग्रीन ग्रुप की महिलओं की बात करें तो आज ये महिलाऐं अपने कामों से सुख्रियां बटौर रही हैं।