नगर निगम कमिश्नर ने किया 13 लाख मीट्रिक टन वाले कचरे के पहाड़ को ख़त्म

नगर निगम कमिश्नर ने किया 13 लाख मीट्रिक टन वाले कचरे के पहाड़ को ख़त्म आज के इस विकासशील दौर में मनुष्य नए से नए अविष्कार कर…धरती की काया पलटने में लगा हुआ हैं….. लेकिन एक तरफ जंहा इसका सकारात्मक असर होता हैं तो दूसरी ओर इसका नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिल रहा हैं…. धीरे – धीरे आबादी बढ़ती जा रही साथ ही प्रदुषण भी ….. आज नौबत यंहा तक आ चुकी हैं की लोगो को साँस लेने के लिए एयर प्योरिफायर जैसे उपकरणों का सहारा लेना पड़ रहा हैं … जबकि इस हवा को जहरीला और कोई नहीं बल्कि हम खुद बना रहे हैं…. वो ऐसे की….. भारत के किसी भी शहर में आप चले जाए तो आपको पहाड़ नज़र आयेंगे…..जी हां पहाड़ …. लेकिन यंहा पहाड़ से मेरा मतलब प्राकृतिक पहाड़ से नहीं…. बल्कि मानव निर्मित उस डंपिंग ग्राउंड से हैं जो धीरे – धीरे अपने पैर पसारता जा रहा है ….. ये कचरे के वो पहाड़ हैं जो आज मौत के पहाड़ बनते जा रहे हैं….. जिनसे निपटने के लिए सरकार भले ही कुछ कर रही हो लेकिन इंदौर के निगमायुक्त ऐसे भी ही जिन्होंने 6 महीने में अपने शहर से 13 लाख मीट्रिक टन वाले कचरे के पहाड़ को 10 करोड़ से भी कम राशि में ख़त्म कर दिया …. जंहा आज इंदौर नगर निगम एक गोल्फ़ कोर्स बनाने की तैयारी में जुटा हुआ है……
साल 2018 में आशीष सिंह को इंदौर के नगर निगम के कमिश्नर के पद पर नियुक्त किया गया…… जिसमें उनके सामने सबसे बड़ी समस्या थी इंदौर के 100 एकड़ में फैले डंपिग यॉर्ड की…… जिसने इंदौर के निवासियों का सांस लेना मुश्किल कर दिया था…..इस समस्या का हल इंदौर नगर निगम ने इस डंपिंग ग्राउंड को ख़त्म करने के रूप में निकाला…… इस परियोजना में खर्च भी करीबन 65 करोड़ का था…… लेकिन काम की रफ़्तार और ज़्यादा खर्च को देखते हुए आशीष ने इसकी कमान अपने हाथ में ली और इस पर काम शुरू किया ……
डंपिंग यार्ड की बात करें तो उसका कचरा 13 लाख मिट्रिक टन था….. जिसमे कि Indore Municipal Corporation(IMC) पिछले 2 सालों में बस 2 लाख मिट्रिक टन कचरा ही साफ़ कर पाई थी…. लेकिन समय ज्यादा लगने की वजह से आशीष को Bio-remediation तकनीक का सहारा लेना पड़ा…..
अगर Bio-remediation तकनीक की बात करने तो इस तकनीक में कचरे में मौजूद कंकड़-पत्थर, पॉलीथीन, रबड़, कपड़ा, मिट्टी, धातू जैसी चीज़ों को अलग कर रिसाइकिल किया जाता है…..और डंपिंग यार्ड में भी कुछ ऐसा ही किया गया…… पॉलीथीन और धातू को IMC रिसाइकिल सेंटर में भेज दिया गया और बचे हुए कंकड़ और पत्थर से शहर की कंस्ट्रक्शन साइट और गड्ढों को भरने में इस्तेमाल किया गया….. बाकी बची मिट्टी को इसी डंपिंग यार्ड में ही छोड़ दिया गया…. जिसका नतीजा ये रहा मात्र 6 महीने में ही डंपिंग यार्ड का नक्शा बदल कर उसे साफ़ मैदान बना दिया …. जिसमें IMC द्वारा पेड़-पौधे लगाए गए हैं…. इतना ही नहीं बल्कि रिसाइकिल की गई धातू से यंहा स्टैच्यू भी लगवाया है…… साथ ही अब इसे गोल्फ़ कोर्स में तब्दील करने पर विचार किया जा रहा हैं….. हालांकि इसे एक बात तो स्पस्ट हो जाती हैं कि सरकारी ओहदे पर बैठने वाला हर उस शख़्स भ्रस्ट नहीं होता है……