October 2, 2023

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पत्थलगड़ी आंदोलन- जहां देश का नहीं खुद का बनाया कानून चलता है!

पत्थलगड़ी आंदोलन-

पत्थलगड़ी आंदोलन- जहां देश का नहीं खुद का बनाया कानून चलता है!

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पत्थलगड़ी आंदोलन, एक ऐसा आंदोलन जिसने देश से अपने हक की लड़ाई के पत्थलगड़ी की शुरूआत की….. रांची से लगभग 50 किलोमीटर दूर घाघरा गांव के बाहर एक विशाल शिलालेख लगाया गया है. जिसके ऊपर, “भारत का संविधान” लिखा गया है। इसके अलावा इस शिलालेख पर संविधान की पांचवीं अनुसूची और उससे जुड़ी धाराओं के बारे में उल्लेख किया गया है. इसके साथ ही एक सख्त हिदायत भी दी गई है, “बाहर से आने वालों का प्रवेश वर्जित है.” घाघरा खूंटी जिले के तमाम गांवों में इस तरह ही प्रवेश के रास्तों पर कई पत्थलगड़ी लगाई गई है। हालांकि ये पत्थलगड़ी इस गांव में बीते जून महीने की 26 तारीख को लगाई गई है। उस दिन के बाद से लेकर आज तक जब भी कोई इंसान इस गांव में जाता है तो पूरा गांव सहमा हुआ दिखाई देता है. गांव की एक महिला असरिता मुन्डू ने बताया कि, पिछले महीने पुलिस ने हमारे गांव में आकर गांववासियों की पिटाई की। उस दौरान पुलिस ने मेरे गर्भवती होने का भी लिहाज नहीं किया, और जिसके चलते पुलिस की पिटाई से एक व्यक्ति की मौत भी हो गई थी।

आखिर क्या है, पत्थलगड़ी आंदोलन..?  क्यों यहां के लोग विद्रोह की आग में झुलस रहे हैं.. आईये हम आपको बताते हैं कि आखिर क्य़ों लोग सरकार के खिलाफ अपनी आवाज उठाने पर मजबूर हो गए हैं।

पिछले 10 महीनों में चर्चा में आया खूंटी जिला, पत्थलगड़ी आंदोलन की वजह से आज सबकी नजरों में है. आज सरकार का विरोध करते हुए इस गांव के लोगों ने इस इलाके में बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित कर दिया है. गांव की दीवारों पर हर जगह लोगों ने खुद ही बयान लिख ड़ाले हैं. जिन्हें देखकर और पढ़कर पता चलता है कि, इस इलाके की अनदेखी की वजह ने ही पत्थलगड़ी आंदोलन को जन्म दिया है. पिछले साल जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के साथ करीब 50 हथियारबंद सीआरपीएफ जवान खूंटी के कांकी गांव में गये थे. जहां गांव के लोगों ने जवानों को घेर लिया, प्रशासन के अधिकारी और सीआरपीएफ के जवान इस गांव के बाहर लगे नाके को हटाने के लिए गांव में घुसे थे. जिससे गुस्साये आदिवासियों ने उन्हें घंटों तक गांव में रोककर रखा, आदिवासी अपने अधिकारों और संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत ग्रामसभा की संप्रभुता की अवहेलना की वजह से गुस्साये थे. हालांकि राज्य प्रशासन के आला अधिकारियों ने अपने अधिकारियों और जवानों को वहां से रिहा कराने के लिए दखल दिया. जिसके बाद गांव के आदिवासियों ने इन्हें छोड़ा दिया

इसी तरह बीते जून में कोचांग गांव से नुक्कड़ नाटक करने गई लड़कियों को पत्थलगड़ी के समर्थकों ने अगवा कर लिया था. जिसके बाद इन लड़कियों के साथ बालात्कार किया. इस मामले में प्रतिबंधित पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया के कुछ सदस्यों को गिरफ्तार किया गया था. इस घटना ने जहां पत्थलगड़ी समर्थकों  और पुलिस प्रशासन के बीच दूरी बना दी तो वहीं इस पूरे मामले को सियासी मोड़ दे दिया.

इसके बाद बीते 26 जुलाई को पत्थलगड़ी के ग्रामीणों ने करिया मुंडा के तीन सुरक्षाकर्मियों को अगवा कर लिया था. अगवा जवानों की रिहाई के लिए पुलिस की टीम घाघरा गांव में घुस गई थी. इस दौरान पुलिस ने पचास से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया था.

हालांकि अगवा किये गये जवानों को लेकर आदिवासियों की मांग थी कि, यहां आदिवासी अधिक हैं. इसकी वजह से उन्हें ‘आदिवासिस्तान’ प्रदेश का दर्जा दिया जाये. खुद को भारत से ‘स्वायत्त’ घोषित कर चुके झारखंड के खूंटी इलाके के आदिवासीयों ने स्कूलों में भी अपना अलग सिलेबस तैयार किया है. इस सिलेबस में यहां के बच्चों को चाचा नेहरू को चोरों का प्रधानमंत्री पढ़ाया जा रहा था.

पत्थलगड़ी समर्थकों की मांग है कि, देश के राष्ट्रपति, राज्यपाल और सुप्रीम कोर्ट के जज पत्थलगड़ी की ग्रामसभा में आकर पत्थलगड़ी पर बहस करें. इसके बाद अगवा किये गये जवानों को छोड़ा जायेगा. आंदोलन समर्थकों का कहना है कि, आदिवासी इलाके अनुसूचित क्षेत्र में आते हैं. जिसकी वजह से संसद या विधानमंडल द्वारा पारित कानून यहां सीधे तौर पर लागू नहीं किया जा सकता. यही वजह है कि, गांव में प्रवेश द्वार के पहले आदिवासी पत्थर पर सूचना खुदवा रहे हैं. क्योंकि यहां ग्रामसभा का शासन है. किसी भी सरकारी संस्थान का नहीं. पत्थलगड़ी समर्थकों ने इसके लिए एक नारा भी दिया है, “न लोकसभा न विधानसभा, सबसे ऊपर ग्रामसभा.”

पत्थलगड़ी आंदोलन की मांगें-

आज भले ही अपनी मांगों को लेकर पत्थलगड़ी के ये गांव कानून को अपने हाथों में लेकर गलत कदम उठा रहे हैं. लेकिन इस आंदोलन की शुरूआत क्यों हुई. किसकी वजह से हुई ये भी गंभीर मुद्दा है. हालांकि जिला का दर्जा हासिल करने के बाद खूंटी लगातार तरक्की की ओर अग्रसर है. झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री खुद इसी जिले से आते हैं. आज बड़े पैमाने पर यहां सरकारी योजनाएं चल रही हैं. जिले में दर्जनों भवन-पुल के निर्माण हो रहे हैं.

हालांकि अभी भी हकीकत वो नहीं है जो लोगों को दिखाई जा रही है. इन बातों पर वहां के रीगा मुंडा कहते हैं कि, शहर से दूर जाइए, हकीकत खुद व खुद सामने आ जायेगी. ये पलाश के फूल, बेर-इमली के पेड़ों के बीच बेबसी, भूख, गरीबी, रोजगार इन सबकी पीड़ा ही चारों ओर दिखाई देती है. योजनाओं के नाम पर अफसर-इंजीनियर, ठेकेदार-बिचौलिए साठगांठ करते हैं और आदिवासी इलाके को लूटने का काम करते हैं.

यही वजह है कि, आज खूंटी, बंदगांव के कई गांवों को करीब से देखने-सुनने पर ये साफ तौर पर पता चलता है कि, विकास के तमाम दावे और योजनाओं की लंबी कतारों के बाद भी यहां की आबादी रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, सिंचाई, बिजली जैसी तमाम सुविधाओं से आज भी वंचित है.

आज भी यहां के लोग चुंआ नदी का पानी पीने को विवश हैं. जिसके चलते यहां चारों ओर हताशा-निराशा के स्वर सुनाई पड़ते हैं. शायद यही वजह है कि, यहां के लोग अपने आप को भारत देश से अलग महसूस करते हैं. शायद यही वजह है कि, यहां के लोग अपने आप को देश के करीब नहीं समझते हैं. शायद यही वजह है कि, यहां के लोग भारतीय संविधान, भारतीय कानून की उतनी परवाह नहीं करते हैं. ऐसे में जिले के लोग पत्थलगड़ी करते हैं तो, सरकार को बुरा लगता है. ऐसे में यहां के लोग अपना हक मांगते हैं तो सरकार को बुरा लगता है. बिंदा इलाके के एक बुजुर्ग एतवा मुंडा बताते हैं कि, यहां आज भी कथित अफसरशाही लोग यहां के लोगों को परेशान करते हैं. सरकारें, अभी भी विकास के नाम पर लोगों को ठगती हैं. यहि वजह है कि, आदिवासी ग्राम सभा के माध्यम से अपना शासन चाहते हैं. क्योंकि उन्हें सरकारों पर यकीन नहीं रहा है.

ये है पत्थलगड़ी करने की असली हकीकत. जिसका जन्म हुआ है, सरकारों की अब तक की नाकामियों की वजह से. जिसने यहां के लोगों को विवश किया है. देश की विचारधारा से कटने का. ग्रामसभा को बढ़ावा देने का. माना की उनके कुछ कदम गलता है. जो ना तो देश हित में हैं और ना ही उनके हित में. लेकिन आज उनकी मजबूरी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि, यहां के लोग आंदोलन करने पर विवश हो गये हैं. हालांकि सरकार कहती है कि, सब कुछ उसके कंन्ट्रोल में हैं. लेकिन जनता की बगावत ये बताने के लिए काफी है कि सरकार के कंन्ट्रोल में कितना कुछ है कितना नहीं.

 

 

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