सावित्रीबाई फुले- महान नायिका जिसने समाज सेवा में गवाई जान

हमारे देश में आज महिलाओं की शिक्षा और उनके आत्मसम्मान की रक्षा के लिए कई मुहीम चलाई जा रही हैं.. बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओं से लेकर महिला सशक्तिकरण तक औरतों के हितों के लिए बहुत कुछ किया जा रहा हैं.. लड़कियों को अच्छी शिक्षा देने के लिए देश की मोदी सरकार ने भी कई योजनाएं चलाई हैं, कई स्कूलों, कॉलेजों में तो आज लड़कियों के लिए मुफ्त शिक्षा भी उपलब्ध कराई गई हैं..
लेकिन जिसकी वजह से लड़कियों को शिक्षा लेने का अधिकार मिला हैं, उनको इसका श्रेय जरूर मिलना चाहिए.. ये बात हम सब जानते हैं कि, महिलाओं को शिक्षित और अपने पैरों पर खड़ा करने की मुहीम महाराष्ट्र की सावित्रीबाई फुले ने शुरू की थी। सावित्रीबाई फुले एक समाजसेवी और शिक्षिका थी, जिन्होंने शिक्षा ग्रहण करके ना सिर्फ समाज की कुरीतियों को हराया, बल्कि भारत में लड़कियों के लिए शिक्षा के दरवाजे खोलने का भी काम किया।
और आज उनकी पुण्यतिथि के मौके पर हम आपको बताएंगे कि, किस तरह सावित्री बाई ने शिक्षा के क्षेत्र में लड़कियों के लिए दरवाजे खोल कर अपना योगदान दिया… सावित्रीबाई फुले कई बाधाओं को पार करते हुए स्त्रियों को शिक्षा दिलाने के अपने संघर्ष में सब्र और आत्मविश्वास के साथ डटी रहीं और उन्होंने अपने इस संघर्ष में सफलता भी हासिल की। सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा के साथ मिलकर उन्नीसवीं सदी में स्त्रियों के अधिकारों, शिक्षा छुआछूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों और समाज में फैले अंधविश्वास के खिलाफ संघर्ष किया।
सावित्रीबाई फुले का जन्म तीन जनवरी 1831 को महाराष्ट्र में हुआ था। सावित्रीबाई फुले और उनके पति ज्योतिराव फुले ने भारत में महिला शिक्षा की नींव रखी थी। दोनों ने पहली बार 1848 में पुणे में देश का पहला आधुनिक महिला स्कूल खोला था। हालांकि, इतना ही नहीं, सावित्रीबाई फुले और ज्योतिराव फुले ने जातिवाद, छुआछूत और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी थी।
सावित्रीबाई का जन्म एक अमीर किसान परिवार में हुआ था। और 1940 में सिर्फ नौ साल की उम्र में उनकी शादी उनसे 4 साल बड़े ज्योतिराव फुले से कर दी गई। सावित्रीबाई और ज्योतिराव की कोई संतान नहीं थी। जिसके चलते उन्होंने यशवंतराव को गोद लिया था। सावित्रीबाई को पढ़ना-लिखना उनके पति ज्योतिराव ने सिखाया था। वैसे तो हमेशा कहा जाता हैं कि, हर आदमी की सफलता के पीछे किसी औरत का हाथ होता हैं.. लेकिन सावित्री बाई की इस कहानी में ये तथ्य थोड़ा उल्टा साबित होता हैं… क्योंकि यहां एक औरत की सफलता की पीछे एक आदमी का हाथ हैं.. सावित्रीबाई फुले के पति ने उनकी इस सफलता में अपना पूरा सहयोग दिया… आपको बता दें कि, सावित्री ने अपने पति के साथ मिलकर पुणे में महिला स्कूल खोला और उसमें टीचर के रूप में काम करने लगीं। जिसके बाद सावित्रीबाई ने अछूतों के लिए भी स्कूल खोला था।
खुद शिक्षा प्राप्त करने के बाद सावित्री बाई ने अपने आस-पास की बाकी महिलाओं को भी शिक्षित करने का जिम्मा उठाया और ज्योतिबा के साथ मिलकर 1848 में पुणे में बालिका विद्यालय की स्थापना की, हालांकि, शुरूआत में इस विद्यालट में कुल नौ लड़कियों ने दाखिला लिया और सावित्रीबाई फुले इस स्कूल की प्रधानाध्यापिका बनीं। लेकिन इसके बाद रास्ते आसान होते चले गए और उन्होंने भारत में लड़कियों और महिलाओं को शिक्षा के अधिकार के साथ अन्य मूलभूत अधिकार दिलाने की भी लड़ाई लड़ी।
उन्नीसवीं सदी में हिंदुओं में बाल विवाह काफी प्रचलित था। लेकिन उस दौर में लोगों के मरने की संख्या ज्यादा थी.. जिसके चलते कई लड़कियां बाल विधवा हो जाती थीं। और सामाजिक रूढ़ियों और परंपराओं की वजह से विधवा लड़कियों की दोबारा शादी नहीं हो पाती थी। जिसको देखते हुए, सावित्री और उसके पति ने मिलकर बाल विवाह के खिलाफ भी सुधार आंदोलन चलाया। ऐसा कहा जाता है कि सावित्री और ज्योतिराव ने जिस यशवंतराव को गोद लिया था। वो भी एक ब्राह्मण विधवा के बेटे थे।
1897 में सावित्रीबाई ने अपने बेटे यशवंतराव के संग मिलकर प्लेग के मरीजों के इलाज के लिए अस्पातल भी खोला था। पुणे के इस अस्पताल में यशवंतराव मरीजों का इलाज करते और सावित्रीबाई मरीजों की देखभाल करती थीं। लेकिन मरीजों की देखभाल करते हुए वो खुद भी इस बीमारी की शिकार हो गईं… जिसके चलते 10 मार्च 1897 को देश की इस महान नायिका का निधन हो गया… आज भी जब-जब महिलाओं की शिक्षा और महिला अधिकारों की बात की जाती हैं, तब-तब समाज सेवा में अपनी जान गवाने वाली सावित्री बाई फुले को जरूर याद किया जाता हैं…
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