October 1, 2023

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शांताबाई बनी कई लोगों के लिए प्रेरणा, देश की पहली महिला नाई बनी शांताबाई

शांताबाई
Sharing is Caring!

आप अपने दोस्ते के साथ नाई की दुकान पर गए और दुकान में पुरुष नाई की जगह महिला दिख जाए तो और वोही आपकी दाड़ी और बालों की कंटीग करें आपके दिमाग में यह सुनकर एक ही बात आएगी पक्की बात हैं और वो बात होगी की नाई को काम पुरुषों का हैं महिलाओं का नही

बिल्कुल सही सोचा ना हमने लेकिन शायद आप लोग ही भूल गए हैं की आज के समय में जो काम पुरुष बेहद अच्छी तरह कर सकते हैं उतना ही महिला भी कर सकती है और आज कर भी रही हैं जी हां आज हम आपकों बता रहें हैं देश की पहली महिला बनी नाई शांताबाई के बारे में

आज भी हमारे देश में महिलाओं को वो कम करने में रोका जाता हैं जो पुरुष करते हैं और साथ ही अगर वो कोई महिला ऐसा काम करने लगें जो पुरुष करते हैं तो उनका मजाक बना दिया जाता हैं ऐसे ही समय से निकली हैं देश की पहली महिला नाई बनी शांताबाई

महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के हासुर सास गिरी गांव में रहनेवाली 70 वर्षीय शांताबाई उन लोगों की लिए मिसाल हैं जो लोगों की मजाक उड़ाने से लोगों की बातों से हर मान जाते हैं शांताबाई ने उस समय में हाथ में उस्तरा पकड़ा जब लोगों के दिमाग में यह चल रहा था की महिलाएं पुरुषों का मुकाबला नही कर सकती हैं शांताबाई की 12 साल की उम्र में श्रीपती के साथ शादी हो गई उनके पिता नाई का काम करते थे और उनके पति का भी यही काम था

शांताबाई के पति के 4 भाईए थे वो सारे मिलकर 3 एकड़ की जमीन पर खेती करते हैं एक दिन 3 एकड़ जमीन का बटवारा हो गए जितना खेत श्रीपती के पास बचा उसमें खेती करके घर का गुजारा नही हो पा रहा था इस श्रीपती ने नाई का काम शुरु कर दिया वो आसपास के गांव में जाकर नाई का काम करने लगे इतनी मेहनत के बावजूद अच्छी आमदनी ना मिलने की वजह से श्रीपति ने साहुकारो से पैसे उधार लेना शुरू किया

हासुरसासगिरी गाँव के सभापती हरिभाऊ कडूकर ने जब श्रीपती की परेशानी देखी तो उसे हासुर सास गिरी में आकर रहने के लिये कहा  हरिभाऊ के गांव में कोई नाई नहीं था इसलिये वो ज्यादा पैसे कमा सकता था इस तरह शांताबाई और श्रीपती हासुर सास गिरी गांव में आकर बस गये अगले दस साल में शांताबाई ने 6 बेटियों को जन्म दिया जिसमे से 2 की बचपन में ही मृत्यु हो गई  दोनों की जिन्दगी आराम से कट रही थी पर अचानक सन 1984 में जब उनकी बड़ी बेटी 8 साल की थी और छोटी एक साल से कम उम्र की थी तब दिल का दौरा पड़ने से श्रीपती का देहांत हो गया

कुछ समय तो शांताबाई को अपने आप को समंभाले में लग गए फिर चोरों बेटियों की जिम्मेदारी शांताबाई पर आ गई पति के देहांत के बद उन्होंने तीन महीने तक दूसरों के खेतों में काम करने लगी उसे दिन में 8 घंटे काम करने पर सिर्फ 50 पैसे मिलते थे, जिससे घर का खर्चा और 4 बेटियों का गुजारा करना मुश्किल था..

श्रीपती के पास जो जमीन थी उसकों शांताबाई को बचना पड़ा जमीन के बदले सरकार से उन्हे 15000 रुपय मिले जो पैसे मिले उसे उन्होंने अपने पति का कर्ज उतार दिया एक महिला के लिए उस समय में अकेले जिंदगी बितना और साथ ही 4 बेटियों के समंभाला बहुत मुश्किल हो गया था वो अपने बच्चो को वो दो वक्त का खाना भी नहीं दे पाती थी तीन महीनो तक वो खेत में काम करती रही और अपने परिवार का गुजारा करती रही बड़ी मुश्किल से वो बच्चों को खाना खिलाती थी इतना ही नहीं कभी कभी वो भूखे ही सो जाते थे परिस्थितियों से तंग आकर आखिर एक दिन शांताबाई अपनी परेशानियों से हार गई उन्होंने अपनी 4 बेटियों के साथ खुद ख़ुशी करने का फैसला कर लिया।

इस बार भी हरिभाऊ कडूकर उनके लिये भगवान साबित हुये.. जिन्होंने उनके पति को नाई के काम की सलाहा अपने गांव में करने की दी थी…. जब शांताबाई अपने जीवन के इस अंतिम चरम पर थी तब हरिभाऊ अचानक एक दिन उनका हाल चाल पूछने आये और उनकी हालत देखकर उन्होंने शांताबाई को अपने पति का व्यवसाय संभालने के लिये कहा…  श्रीपती के मौत के बाद गांव में दूसरा नाई न होने की वजह से शांताबाई अच्छे पैसे कमा सकती थी।

शांताबाई यह बात सुनकर हैरान हो गई उनके दिमाग में सबसे पहले एक ही सवाल आया की लोग क्या कहेंगे लेकिन फिर भी उन लोगों की फिर्क छोड़ कर उन्होंने अपने हाथ में अपने पति का उस्तार ले लिया पहले तो लोगों ने उन्होंने देखकर मजाक बनाया लेकिन फिर वोही लोग उसने अपनी दोड़ी और बाल काटवाने लगें

जब वह अपनी जिंदगी से परेशान हो गई थी तब उनके पास दो रास्ते हैं पहला अपने बच्चों साथ आत्महत्या कर ले और दूसरा समाज की या लोगो की परवाह किये बिना अपने पति का उस्तरा उठा ले उन्हें अपने लिए नही अपने बच्चों के लिए जिना था इसलिए उन्होंने दूसरा रास्ता चुना और आज वो देश की पहली महिला नाई बनी.. आज वो लोगों के साथ जानवरों के बाल भी काटती हैं साथ ही उन्होंने अपनी चारों बेटियों की शादी बिना किसी की मदद से बहुत धुमधाम से की

महिलाएं चाए तो क्या नही कर सकती हैं पर जरुरत हैं तो अपने बारे में सोचने की अगर अपनी जिंदगी में समाज के बारे में सोचा तो शायद महिलाएं कभी आगे नही बढ़ पाएगी….

 

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