एंबुलेंस के ना आने पर ठेले पर लाद मरीज को पहुंचा अस्पताल

Ambulance (एंबुलेंस) के ना आने पर ठेले पर लाद मरीज को पहुंचा अस्पताल
कहते हैं जो लोग बेबस के सताये होते हैं उन्हें लोग भी ज्यादा परेशान करते हैं. क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि, उन बेबस लोगों का कोई अस्तित्व नहीं है. यूपी के देवरिया की अगर बात करें तो यहां शायद ना तो कोई प्रजातंत्र चलता है और ना ही कोई सरकारी तंत्र. हालांकि सरकार लाखों दावे करती रहती है. प्रदेश में विकास की. प्रदेश मे उच्च स्वास्थ्य सेवा की, हालांकि यूपी के देवरिया से सामने आई खबर यूपी सरकार के सरकारी तंत्र पर किसी तमाचे से कम नहीं.
सरकार आये दिन कहती रहती है. अगर किसी इंसान को कोई भी परेशानी होती है तो, वो 108 नंबर डॉयल कर Ambulance (एंबुलेंस) मंगा सकता है और निशुल्क अस्पताल तक अपने रोगी को ला सकता है. हालांकि असल हकीकत शायद इसके उलट है क्योंकि जब कोई इंसान 108 डॉयल करता है तो, उसे संत्वना दे दी जाती है कि, Ambulance (एंबुलेंस) थोड़ी देर में पहुंच जायेगी. लेकिन वक्त बीतने की साथ Ambulance (एंबुलेंस) तो नहीं आती. आती हैं महज मुसीबतें. बिमारी के रूप में. क्योंकि जो इंसान या जो बच्चा इस समय बीमार होता है. वक्त बीतने के साथ के साथ स्थिती खराब हो जाती है और उसके पास आखिरी एक विकल्प हो ता है अपने रोगी को अस्पताल ले जाये. जिसके लिए वो अपना संसाधन चुनता है….
इसी तरह देवरिया के तेलियापुर के रहने वाले एक परिवार में जब उनका छोटा बच्चा बिमारी हुआ तो उन्होंने एंबुलेंस को फोन किया तो, फोन उठाने वाले इंसान कहा कि, एंबुलेंस थोड़ी देर में आ जायेगी. हालांकि काफी समय बीतने के बाद भी एंबुलेंस नहीं आई. जिसके चलते तेलियापुर के रहने वाले इस परिवार ने अपने बच्चे को अस्पताल पहुंचाने के लिए, घर की आजीविका चलाने वाले ठेले का सहारा लिया और बच्चे को अस्पताल पहुंचाया.
सरकार अपने कामों की तारीफों दावे हर जगह, हर मंच पर करती रहती है. हालांकि हर बार सरकार के दावों की पोल इस तरह की खबरें खोल देती हैं और इसके जिम्मेदार होते हैं. सरकार के सरकारी तंत्र में रह रहे वो लोग जो किसी आम इंसान की जिंदगी को जिंदगी ना समझकर उसे कौड़ी के भाव समझते हैं. क्योंकि जिस तरह ये परिवार अपने बच्चे को ठंड की इस रात में ठेले पर लाद कर ईलाज के लिए लाया. उससे साफ पता चलता है कि, सरकार की सारी नातियों का बखान सरकार खुद ही करती रहती है. जबकि आम जनता तब भी इन्हीं नीतियों को टकटकी लगा सुनती थी और आज भी हालांकि अगर हालात बदलने की बात करें तो, हालात में ना तो पहले ही बदलाव आये थे और ना ही आज..
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