October 2, 2023

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Kisan Bulletin 8th May 2019- तंबाकू की फसल से किसान मालामाल

Kisan Bulletin 8th May 2019
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Kisan Bulletin 8th May 2019-

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने तंबाकू मुक्त राज्य की घोषणा तो की है लेकिन, गुजरात में तंबाकू का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है। और सिर्फ उत्पादन ही नहीं बढ़ रहा बल्कि यहां के किसान दो मौसमों में तंबाकू की खेती कर रहे हैं। इसकी मुख्य वजह है कि किसानों को अच्छे पैमाने पर फायदा मिल रहा है। आपको बता दें कि,, राज्य में तंबाकू की बढ़ती खेती से उत्पादक आंकड़ा 3.80 लाख टन तक पहुंच गया है। खरीफ के मौसम में तम्बाकू की खेती 63,000 हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है जबकि रबी सीजन में 1.16 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया जाता है। और एक हेक्टेयर में 3000 किलोग्राम तंबाकू उत्पादित किया जा रहा है। आपको बता दें कि, गुजरात में तंबाकू के प्रतिबंध के बाद से किसानों ने खेती के क्षेत्र में वृद्धि की है। गुजरात में पहले केवल खेडा और आनंद जिले के 20,000 हेक्टेयर में तंबाकू का उत्पादन किया जाता था। और अब इन दो जिलों में 92500 हेक्टेयर में तंबाकू उगाया जाता है। उत्तर गुजरात के सभी 6 जिलों में 23,800 हेक्टेयर में तंबाकू की खेती की जा रही है। जिनमें आनंद की 60, 500, खेड़ा की 31,700, मेहसाणा की 12,700, गांधीनगर की 3400, साबरकांठा की 2400, बनासकांठा की 2800, पाटन की 1900, अरावली की 600 हेक्टेयर जमीन में तंबाकू उगाया जाता है। जबकि, राज्य के बाकी 25 जिलों में कोई भी किसान तंबाकू नहीं उगाता है। हालांकि, ये सब जानते हैं कि, तंबाकू लोगों के लिए जानलेवा है लेकिन उसकी उपज किसानों को मालामाल कर रही है।

तरबूज की खेती आमतौर पर नदी किनारे की जाती है, लेकिन मध्य प्रदेश के देवास जिले में खातेगांव तहसील के कई किसान अब अपने खेतों में तरबूज की खेती से गेहूं, चना और मूंग की फसलों की तुलना में कई गुना ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं। जैसा कि आप सभी जानते है कि, पिछले कुछ सालों में खेती की सूरत तेजी से बदली है। किसान परम्परागत फसलों की जगह ऐसी फसलें उगाने लगे हैं, जिनमें मुनाफा ज्यादा होता होता है। 70-75 दिन की तरबूज की फसल से किसानों को एक एकड़ में 50 हजार से एक लाख तक का मुनाफा हो रहा है। ऐसे में ग्राम घोड़ीघाट के किसान शरद मनोरीलाल विश्नोई पिछले 4 सालों से तरबूज की खेती से न सिर्फ अन्य किसानों को प्रेरित कर रहे हैं बल्कि खुद भी अच्छी खासी कमाई कर रहे है। हालांकि बीज का गलत चयन और नाली पद्धति से फसल लगाने के कारण शरद को शुरूआती दो सालों में काफी नुकसान उठाना पड़ा था। लेकिन उस वक्त खेत में तरबूज की फसल लगाने वाले शरद क्षेत्र के शायद पहले किसान थे। इतना ही नहीं, शरद की मानें तो शुरू के दो सालों तक उनकी लागत भी नहीं निकल पा रही थी… लेकिन शरद ने हार नहीं मानी.. और बीज की किस्म बदलने और मल्चिंग-ड्रिप इरिगेशन सिस्टम से तरबूज लगाना शुरू किया….. जिसके चलते अब किसान शरद हर साल मोटा मुनाफ़ा कमा रहे हैं।

राजस्थान के बिश्नोई क्षेत्र में अकाल के कारण लोगों को पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सरकार ने भी अभी तक चारा डिपो की व्यवस्था नहीं की है। जिस कारण लोगों को बाजार से मजबूरी में चारा खरीदना पड़ रहा है। जो इन दिनों काफी महंगा हो चुका है। खासकर किसानों के लिए गोवंश का पालन करना मुश्किल हो रहा है। गर्मी के मौसम में चारा नहीं होने से गोवंश अकाल का दंश झेल रहा है। तो वहीं दूर-दराज के गांवों में तो हालात काफी मुश्किल हो चुके हैं। क्षेत्र में अकाल के कारण पशुपालक और किसान अपने पशुओं को खुला छोडऩे पर मजबूर हो रहे है। किसानों के पास ज्यादा पशु होने की वजह से चारे-पानी की व्यवस्था नहीं हो पा रही है। किसान अपने पशुओं को औने-पौने दामों में बेच रहे है। जिसके चलते किसानों को बड़ा नुकसान भी हो रहा है। क्षेत्र में चारे की कमी की वजह से चारे की मांग बढ़ गई है। जिसके कारण बाहरी राज्यों से चारा मंगवाकर किसानों की मांगों को पूरा किया जा रहा है, लेकिन बाहरी राज्यों से लाने के बाद सूखे चारे के दाम बढ़ गए हैं। इन दिनों चारा खरीद केंद्रों पर 1500 से 1700 रुपए प्रति क्विंटल चारा बिक रहा है। किसानों का कहना है कि पशुओं के लिए चारा खरीदने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है, लेकिन पूरी मेहनत के बाद भी कोई फायदा नहीं मिल पाता है। ऐसे में पशुओं से जितना फायदा नहीं हो पाता है, उतना तो पशुओं के लिए चारा खरीदने में खर्च हो जाता है। जिसके कारण पशुपालकों के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। हालांकि, किसानों की आर्थिक स्थिति और मुश्किलों को देखते हुए तहसील स्तर पर सरकारी चारा डिपो खोलकर किसानों को राहत प्रदान करने की मांग की गई है। आपको बता दें कि, चारे के साथ-साथ कई ग्रामीण इलाकों में पशुओं को पानी के लिए भटकना पड़ रहा हैं। कई जगहों पर नहरों में पानी नहीं होने की वजह से पशु प्यासे ही रह जाते है। ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की नियमित सप्लाई नहीं होने के कारण पशुपालकों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

 

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