Kisan Bulletin 6th Sep- हाइटेक टमाटक की खेती पर मिलेगी सब्सिडी

Kisan Bulletin 6th Sep- हाइटेक टमाटक की खेती पर मिलेगी सब्सिडी
Kisan Bulletin 6th Sep-
- बीते गुरूवार को दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् में एक प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। जिसमें आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्रा ने किसानों से सही फसल और सही किस्म को चुन कर जल संरक्षण और संग्रह करने का आग्रह किया। आपको बता दें कि, देश में खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए राज्यों के आधार पर फसल योजना बनाई जा रही है। जिसके सालभर में तैयार होने की उम्मीद है। इस कांफ्रेंस के दौरान महानिदेशक ने कहा कि, देश में इस समय सबसे बड़ी समस्या जल संकट की है। जहां साल 1951 में प्रति व्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता 5,177 घनमीटर थी, जो कि, साल 2014 में घटकर 1,508 घमनीटर रह गई है। और तो और आने वाले समय में यानि कि, साल 2025 तक ये और ज्यादा घटकर 1,465 घनमीटर ही रह जाएगी। इसलिए पानी की बचत करना बहुत जरूरी हो गया है। इसी के साथ उन्होंने ये भी बताया कि, इस समय देश में कुल खेती योग्य केवल 48 फीसदी जमीन ही सिंचित है।
- आज के समय में खेती-बाड़ी को बढ़ावा देने के लिए सरकार तरह-तरह की योजनाओं का सहारा ले रही है और अब इसी राह पर चलते हे हरियाणा सरकार ने राज्य के कुछ चुनिंदा जिलो में टमाटर की हाइटेक स्टेकिंग खेती करने पर किसानों को सब्सिडी देने का ऐलान किया है। आपको बता दें कि, फिलहाल राज्य के 5 जिलों में टमाटर की हाइटेक स्टेकिंग फार्मिग खेती की जा रही है. और अब इसी दिसंबर से रेवाडी जिले में भी इस खेती को शुरू किया जाने वाला है। जानकारी के अनुसार, इस तकनीक के तहत पहले साल में 50 हेक्टेयर में टमाटर की बुवाई की जाएगी. और साथ ही, टमाटर की सिर्फ उन्नत बेलदार किस्म को ही उगाने का काम किया जाएगा. जिसके बाद पौधे की बेल को बांस के सहारे ऊपर चढ़ाया जाता है। इस तकनीक से एक पेड़ में फल भी काफी ज्यादा लगेंगे और करीब 13 से 14 किलोग्राम तक उत्पादन मिल सकेगा। तो वहीं पुरानी तकनीक से एक पौधे में सिर्फ 6 से लेकर 7 किलोग्राम तक ही उत्पादन हो सकता है। आपको बता दें कि, स्टेकिंग पद्धति से खेती करने वाले किसानों को बागवानी विभाग की तरफ से सब्सिडी दी जाएगी। जिसके तहत 40 फीसदी सब्सिडी बुवाई और बीज पर मिलेगी।
- जहां पूरे देश में इस समय यूरिया की कमी से आए दिन परेशानी की खबरें पूरे देश में सामने आ रही हैं वहीं तेलंगाना में यूरिया की कमी के कारण एक किसान की जान चली गई. आपको बता दें बीते दिन किसान सिद्दीपेट जिले में यूरिया खरीदने के लिए अपनी लाइन में लगा हुआ था. इसी दौरान अचानक उसी तबीयक बिगड़ गई और उसके बाद किसान की मौत हो गई. प्राइमरी एग्रीकल्चरल क्रेडिट सोसाइटी पर बीते दिन सी. ये लैयाह खाद लेने पहुंचे थे. हालांकि कतार में लगकर अपनी बारी का इंतजार करते किसान की अचानक तबीयत खराब हो गई और किसान की मौत हो गई. आपको बता दें की किसान मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के गृह जिले से आता है. वहीं किसान के घर वालों का आरोप है की वो पिछले तीन दिनों से यूरिया के लिए पीएसीएस पर जा रहे थे, वहीं बीते दिन तो सुबह से किसान अपनी पत्नी के साथ कतार में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. हालांकि इसके बाद भी यूरिया नहीं मिल पाया था. जाहिर है, जहां यूरिया की कमी के चलते देश के कई राज्यों को इसी तरह परेशान होना पड़ रहा है. वहीं दूसरी तरफ उर्वरकों की कमी के चलते फसलें मुरझा रही हैं. इसके बावजूद भी किसानों की मांगों को पूरा नहीं किया जा रहा, वही किसान की मौत के बाद राज्य की सरकार ने केंद्र सरकार को इसका जिम्मेदार ठहराते हुए कहा की केंद्र सरकार पर्याप्त मात्रा में यूरिया देने में विफल रही है, जिसके चलते इस समय तेलंगाना में ये हालात हुए हैं. कृषि मंत्री एन.निरंजन रेड्डी की मानें तो उन्होंने कहा कि, राज्य सरकार ने केंद्र से बीते महीने 8.5 लाख टन के पूरे आवंटित कोटे को जारी करने का आग्रह किया, हालांकि 3.97 लाख टन जारी किया गया. जिसमें अभी तक सिर्फ 2.12 लाख टन किसानों तक पहुंचा है. वहीं मंत्री के इस बयान से भारतीय जनता पार्टी व तेलंगाना की सत्तारूढ़ पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई है. हालांकि इन सबके बीच हमेशा किसानों को ही परेशानियां उठनी पड़ती हैं
- उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के किसान इस समय अपनी धान की फसल को बचाने के लिए काफी जद्देजहद में जुटे हुए हैं, दरअसल, पिछले काफी समय से बारिश ना होने के चलते किसानों के धान के बिचड़े सूखने की कगार पर हैं,तो वहीं दूसरी ओर नहरों में पानी ना होने की वजह से भी किसानों को खेतों में सिंचाई करने में काफी परेशानी आ रही है, ऐसे में किसान परेशान है कि, वो आखिर करें भी तो क्या?
- राजस्थान के करौली में किसानों के बाजरे में फड़का रोग लगने के चलते इस समय उनकी परेशानियां काफी बढ़ गई हैं. ऐसे में किसान अब प्रशासन से मदद की गुहार लगा रहे हैं।
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