Kisan bulletin 16th May 2019- तरबूज की ये किस्म उगाकर मालामाल किसान

Kisan bulletin 16th May 2019-
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में पारंपरिक खेती के साथ किसान अब आधुनिक खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। यहां के किसानों को मेंथा, केला, टमाटर, और स्ट्राबेरी की खेती के साथ-साथ अब ताइवानी तरबूज और खरबूजे की खेती भी काफी भाने लगी हैं… आपको बता दें कि, ताइवानी तरबूज की मांग सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश के बाकी राज्यों में भी काफी ज्यादा हैं। जिसके चलते किसानों की तरबूज की फसल तो हाथ-हाथ ही बिक जाती हैं। राज्य में देसी तरबूज के मुकाबले ताइवानी तरबूज का उत्पादन काफी ज्यादा होता है। जिसके चलते इस वक्त जिले में पहले के मुकाबले सैकड़ों हेक्टेयर ताइवानी तरबूज की खेती में इजाफा हुआ हैं। आपको बता दें कि, पद्मश्री से सम्मानित किसान रामसरन वर्मा ताइवानी तरबूज की एक एकड़ की फसल और 60 हजार की लागत में तीन लाख रूपये तक का मुनाफा कमा रहे हैं। रामसरन का कहना हैं कि, पहले किसानों को गेंहू और धान के अलावा दूसरी किसी फसल के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती थी.. लेकिन अब जैसे जैसे वक्त बदल रहा हैं वैसे-वैसे किसान भी परंपरागत खेती से हटकर नई तकनीके अपना कर कम लागत में मुनाफा कमा रहे हैं। हालांकि, ताइवानी तरबूज की फसल को सिंचाई के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। इसलिए जिन इलाकों में पानी की दिक्कत है, वहां के किसान तरबूज की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। आपको बता दें कि, स्वाद में भी देसी तरबूज के मुकाबले ताइवानी तरबूज काफी स्वादिष्ट और मीठा होता है।
पंजाब के बटाला जिले के गांव घोगा में एक किसान के अपने खेतों में नाड़ को आग लगाने के कारण पास के मकानों को काफी नुकसान पहुंचा हैं। हालांकि, आग लगाने वाले किसान के खिलाफ पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है। पूरे मामले की जांच कर रहे थाना सदर के एएसआई हरिंदर सिंह ने बताया कि, गांव घोगा के रहने वाले किसान विनोद कुमार ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई हैं, जिसमें उन्होंने बताया कि, शाम करीब साढ़े 5 बजे उनके ईंट भट्ठे के पास गांव का किसान जोधा सिंह अपने खेतों में गेहूं की कटाई के बाद बची नाड़ को आग लगा रहा था। विनोद कुमार के अनुसार उसने जोधा सिंह को नाड़ जलाने से ये कहकर रोकना चाहा कि आंधी चल रही है… जिससे आग दूर तक फैल सकती हैं। और आग के पास मौजूद खेतों और घरों को नुकसान हो सकता हैं। लेकिन जोधा सिंह ने उसकी बात को नजरअंदाज करते हुए अपने खेत में फसल अवशेषों में आग लगा दी… खेतों की आग तेज आंधी की वजह से भड़क उठी और खेत के पास रहने वाले साहिब सिंह और जिंदर मसीह के घरों तक जा पहुंची। किसानों की मानें तो आग के कारण उनके घरों को काफी नुकसान पहुंचा हैं। हालांकि, किसान जोधा सिंह को पुलिस ने हिरासत में ले लिया हैं, दोस्तो जैसा कि आप सभी जानते है कि, खेतों में फसल अवशेष जलाने पर देश की सरकारी ने कानूनी रूप से प्रतिबंध लगाया हुआ हैं… लेकिन इसके बावजूद भी देश में पराली जलाने के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं.. जैसा कि आप सभी जानते हैं कि, पराली जलाना ना केवल हमारे पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं बल्कि, इससे जानमाल की हानि होने का भी एक खतरा बना रहता हैं.. ऐसे में हम आप सभी किसान भाईयों से निवेदन हैं कि, अपने खेतों में पराली ना जलाएं.. और साथ ही, अगर आपके आस-पास कोई पराली जलाते हुए आपकों दिखाई दे तो उसे भी ऐसा करने से जरूर रोंके..
बिहार के चंपारण जिले के बेतिया में कृषि वैज्ञानिकों की काफी कोशिशों के बाद भी शीशम के पेड़ों में फंगस का कहर नहीं रुक पा रहा है। जिसके चलते किसान बेहाल हैं। आपको बता दें कि, करीब एक दशक पहले शीशम के पेड़ों में इस बीमारी ने महामारी का रूप लिया था। हालांकि, उस वक्त किसानों के 75 पर्सेंट शीशम के छोटे से लेकर बड़े पेड़ सूख गए थे… ऐसे में किसानों ने शीशम के पेड़ लगाना बंद कर दिया था… लेकिन मजबूर किसानों के पास जब कोई और विक्लप नहीं बचा.. तब फिर से उन्होंने शीशम के पेड़ लगाना शुरू किया। खैर समय के साथ पेड़ को बड़े होने लगे… लेकिन कुछ दिनों पहले ही एक बार फिर इस बिमारी ने शीशम के पेड़ों को अपनी पकड़ में ले लिया.. भले ही सरकार और विभिन्न विभाग किसानों पर पेड़ लगाने का जोर दे रहे हैं लेकिन शीशम के पड़ों को सूखने से बचाने के लिए एक सार्थक पहल बहुत जरूरी हैं… आपको बता दें कि, फंगस शीशम के पेड़ों पर बहुत जल्दी लगता हैं… ऐसे में पेड़ सबसे पहले अपने ऊपरी भाग से सूखना शुरू करता हैं फिर पत्ते लाल होकर झड़ने लगते हैं.. जिसके बाद पेड़ की जड़ और धड़ दोनो में पपड़ी छोड़ने लगता हैं.. और कुछ महीनों में ही पेड़ पूरी तरह सूख जाता हैं.. हालांकि, इसके बाद भी इन पेड़ों को जबरदस्ती फर्नीचर बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता हैं लेकिन, इनसे बने फर्नीचर ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाते हैं.. हालांकि, अब जगह-जगह सखुआ, सागवान और सतशाल की लकड़ी के बने फर्नीचरों का इस्तेमाल होने लगा हैं… लेकिन इसके बाद भी शीशम का क्रेज लोगों में आज भी बरकरार हैं.. ऐसे में शीशम के पौधें लगाने वाले किसानों का कहना हैं कि, कृषि विभाग और सरकार का ध्यान इस तरफ भी होना चाहिए.. हालांकि, विशेषयज्ञों की मानें तो किसान भाई ऐसी स्थिति में तीसी का तेल मिला कर पेड़ों में देंगे तो इस बीमारी पर रोकथाम की जा सकती है।
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