कॉन्ट्रैक्ट खेती से करोड़ों कमाकर युवाओं के लिए मिसाल बने सचिन काले

बेरोजगारी के इस दौर में आजकल के नौजवानों का बस एक ही लक्ष्य हैं कि, वो कोई भी डिग्री हासिल कर के बस एक अच्छी नौकरी पा सकें.. और जहां बात लड़कों की आती हैं, तो वहां सबसे पहले नंबर पर आती हैं इंजीनियरिंग, और इसी के चलते गांवों में रहने वाले युवा भी गांव छोड़कर शहरों की तरफ अपना रूख मोड़ लेते हैं। मगर इस बीच छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के मेधपुर गांव के रहने वाले सचिन काले ने गुडगांव में अच्छी खासी नौकरी छोड़कर अपने गांव में खेती करने का मन बना लिया। और आज वो देश के कई युवाओ के लिए किसानी क्षेत्र में मिसाल बन चुके हैं।
दरअसल, सचिन काले ने कॉन्ट्रैक्ट पर खेती करने के बारे में काफी रिसर्च की और साल 2014 में खुद की कंपनी ‘इनोवेटिव एग्रीलाइफ सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड’ शुरू कर दी। सचिन की कंपनी किसानों को कॉन्ट्रैक्ट खेती करने में मदद करती है। जिसके बाद सचिन ने प्रोफेशन तरीके से खेती के सलाहकारों को नौकरी पर रखा और उन्हें ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया। हालांकि, इसमें कुछ नया नहीं हैं, मगर हर आम परिवार की तरह सचिन के घरवालें भी चाहते थे कि, उनका बेटा इंजीनियर बने, और अपने घरवालों का सपना पूरा करने के लिए सचिन ने साल 2000 में नागपुर के इंजिनियरिंग कॉलेज से कैमिकल इंजिनियरिंग में बीटेक किया।
उसके बाद उन्होंने फाइनैंस में एमबीए भी किया। इतनी पढ़ाई करने के बाद सचिन को आसानी से एक पावर प्लांट में नौकरी भी मिल गई और धीरे-धीरे वो सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गये। लेकिन सचिन का मन फिर भी पढ़ने में लगा रहा और उन्होंने इस दौरान लॉ की पढ़ाई कर ली। 2007 में उन्होंने डेवलपमेंटल इकनॉमिक्स में पीएचडी में एडमिशन ले लिया। पीएचडी करते वक्त ही उन्हें ये एहसास हुआ कि जॉब से बेहतर है कि खुद का बिजनेस शुरू किया जाये।
मगर सवाल ये था कि, किस बिजनेस में हाथ आजमाया जाये, सचिन काले इस बारे में सोच ही रहे थे, कि उनकों अपने दादा जी की कही एक बात याद आ गई, सचिन के दादा जी ने उन्हें बचपन में एक सलाह दी थी, कि इंसान किसी भी चीज के बगैर रह सकता हैं लेकिन खाना खाये बिना वो गुजारा नहीं कर सका। हालांकि, सचिन के दादा जी सरकारी नौकरी करते थे, और रिटायर होने के बाद भी उन्होंने मेहनत कर खेती करना शुरू कर दिया था।
तो बस सचिन ने भी खेती करने का मन बना लिया, सचिन के पास 25 बीघे खेत था, लेकिन उन्हें पता नहीं था, कि इसमें कौन सी फसल लगाई जाए, कि उन्हें अच्छी खासी कमाई हो। कुछ दिन खेती पर ध्यान लगाने के बाद उन्हें समझ में आया कि यहां सबसे बड़ी समस्या मजदूरों की है। बिलासपुर में सारे मजदूर रोजगार की तलाश में बाहर देश के दूसरे हिस्सों में निकल जाते हैं। सचिन को लगा कि अगर वे उन्हें उतना ही पैसा देंगे तो ये मजदूर बाहर नहीं जाएंगे और उनकी खेती का काम भी हो जायेगा। सचिन का सपना इससे भी बड़ा था, तो उन्होंने मजदूरों के साथ-साथ आसपास के किसानों के बारे में सोचना भी शुरू कर दिया।
उन्होंने किसानों की जमीन किराये पर ली और किसानों से अपने बताये तरीके से खेती कराने लगे। हालांकि, इस काम में सचिन को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, और जिसके चलते उन्हें अपना 15 साल का पीएफ तुड़वाना पड़। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। सचिन ने सोचा कि, अगर इसमें वो सफल नहीं होंगे, तो उनके पास पुराना करियर ऑप्शन तो है ही। हालांकि, जुनूनी और समर्पण से लैस सचिन की मेहनत बेकार नहीं गई।
आपको बता दें कि, किसान सचिन काले के सेटअप से बाकी किसानों को भी अच्छा खासा फायदा होता है। पहले जो किसान सालभर में सिर्फ एक फसल लगाते थे, वही किसान अब पूरे साल खेती करते हैं। इतना ही नहीं, सचिन की मदद से उनके इलाके में किसानों की फसल का न्यूनतम मूल्य भी निर्धारित हो गया है। इसके साथ ही सचिन ने अपने 25 बीघे वाले खेतों में धान और सब्जी की खेती करनी शुरू कर दी। उससे भी उन्हें फायदा होने लगा। सचिन को देखकर बाकी किसान भी आकर्षित हुए और अपनी खेती में उन्हें पार्टनर बनाने लगे।
आज सचिन की कंपनी लगभग 137 किसानों की 200 से ज्यादा एकड़ जमीन पर खेती करती है और साल में लगभग 2 करोड़ का टर्नओवर करती है। सचिन अगर चाहते तो किसानों के खेत खुद खरीद सकते थे, लेकिन उनका मानना था कि इससे किसान मर जायेगा। सचिन ने अपनी पत्नी कल्याणी को भी अपने बिजनेस में शामिल कर लिया। मास कम्यूनिकेशन में मास्टर्स कल्याणी अब कंपनी के फिनेंन्शियल हिस्से को मैनेज करती हैं। सचिन जैसे किसान हमारे देश के युवाओं के लिए मिसाल बन कर सामने आते हैं, ग्रामिण न्यूज ऐसे किसानों को सलाम करता हैं।
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