जीन एडिटिंग से तैयार होंगे विटामिन-ए से भरपूर खाद्यान्न, शोध में जुटे वैज्ञानिक

जीन एडिटिंग से तैयार होंगे विटामिन-ए से भरपूर खाद्यान्न, शोध में जुटे वैज्ञानिक
सबसे अच्छा बीज वो है जिसमें बिना किसी इंसानी छेड़छाड़ के सभी प्राकृतिक गुण मौजूद हों और किसी भी प्रकार की कोई मिलावट न हो। सिलेक्शन विधि से बीज तैयार करना ठीक है पर, जीन परिवर्तन हर बार सही नहीं होता। लेकिन बढ़ती आबादी के लिए पर्याप्त अन्न और पोषण उपलब्ध कराने के लिए वैज्ञानिक नई-नई रिसर्च करते रहते हैं। अभी भारतीय वैज्ञानिक जीन एडिटिंग की सहायता से विटामिन ए से भरपूर फल, दाल, अनाज और सब्जियों की उन्नत किस्म पर शोध कर रहे हैं। जिसमें चावल, दाल, टमाटर, बाजरा और केला शामिल है।
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इस तकनीकी को व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए बिना नियामक नीति के भी इस्तेमाल किया जा सकता है। बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने जीन एडिटिंग के इस्तेमाल पर विस्तृत गाइडलाइंस तैयार कर ली हैं लेकिन नियामक संस्था जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेसल कमिटी अभी इस बात पर मंथन करने में जुटी है कि ये तकनीक जेनेटिकली मोडिफाइड यानि GM तकनीकी से कितनी अलग है। ये शोध नोबल पुरस्कर विजेता इमैनुएल कारपेंटियर और जैनिफर डूडना के शोध पर आधारित है। जिसमें जेनेटिकली मोडिफाइड तरीके में विदेशी डीएन यानि दूसरी प्रजाति के जीन प्रवेश कर बनाया जाता है। ऐसे में दूसरी प्रजाति के जीन भी मुख्य बीज प्रवेश न कर जाये इस बात की सम्भावना को देखते हुए नियामक संस्था को गाइडलाइंस पर आखिरी फैसला देने में समय लग रहा है।
आईसीएआर के पूर्व महानिदेशक आर एस परोडा का कहना है कि, कई लोग जीन एडिटिंग और जेनेटिकली मोडिफाइड यानि जीएम एडिटिंग में भ्रमित हो जाते हैं। लेकिन हमें अंतर करना सीखना होगा। जीन एडिटिंग के साथ ट्रांसजेनिक की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए। इसलिए इसे जीएम खेती के नियामक के तहत नहीं लाना चाहिए। आपको बता दें कि, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, चीन और ब्राजील के वैज्ञानिक CRISPR-Cas9 सिस्टम से बीज तैयार करते हैं। जिसमें इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता कि, दूसरी वैरायटी का असर बीज पर न हो।
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