गिरती GDP की पालन हार बनेगी कृषि! क्या किसानों को संभालेगी सरकार?

देश में जिस समय COVID-19 की शुरुआत हुई थी. उस समय देश में सरकार ने अपनी सजगता दिखाते हुए जहाँ सर्वव्यापी लॉकडाउन लगा दिया था. वहीं तब से लेकर अब तक पूरे देश में कोरोना वायरस का खौफ़ फैला हुआ है. जिसके चलते पिछले 6 महीनों से भारत ना तो पूरी तरह अपने काम पर लौट सका है और ना ही अभी लौटने के आसार नज़र आ रहे हैं. वहीं साल 2019 के आखिरी समय से भारत की अर्थ व्यवस्था की रफ्तार में गिरावट नज़र आने लगी थी. वहीं ये गिरावट इस समय अपनी सभी सीमाओं को पार कर चुकी है.
देश में बीते 30 अगस्त को केंद्र सरकार की सांख्यिकी मंत्रालय की तरफ से जारी 2020-21 की वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानि की अप्रैल जून के बीच देश की GDP में 23.9 फीस की रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई है. जिससे भारत के हर सेक्टर की ग्रोथ सबसे माइनस में चली गई. जहाँ भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में ये गिरावट -39.3 फीसदी रही तो वहीं कंस्ट्रक्शन सेक्टर में ये गिरावट -50.3 फीसदी रही.
साथ ही, बिजली सेक्टर में ये गिरावट -7 फीसदी, सकल मूल्य वर्धन में -38.1 फीसदी, सर्विस सेक्टर में -20.6 जबकि खनन क्षेत्र में सकल मूल्य वर्धन -23.3 फीसदी, ट्रेड एवं होटल में -47 फीसदी, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में -10.3 फीसदी और फाइनेंस, रियल एस्टेट में -5.3 फीसदी रहा है. जिसके चलते भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर टूट गई है.
वहीं इन सबके बीच कृषि क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र रहा है जिसमें 3.4 फीसदी की सक्रियता दिखाई दी है. ऐसे में जहाँ एक तरफ देश में लगे सर्वव्यापी लॉकडाउन के चलते सारा कारोबार ठप पड़ा था. वहीं कृषि क्षेत्र धीरे धीरे सक्रियता की तरफ बढ़ रहा था. ये देश के किसानों की मेहनत का ही असर है. जिसके चलते सकल घरेलू उत्पाद की सूची में कृषि सबसे ऊपर है.
ऐसे में जहां देश का किसान इस समय लोगों का पेट पालने को मजबूर है. वहीं इंसान और सरकार जानती है कि, किसानों को उनका हक नहीं मिल पाता या फिर उनकी तैयार फसलों को बारिश व जानवर नुकसान पहुंचाते हैं. इसके अलावा कभी सूखा तो कभी टिड्डी हमला और न जानें कितनी ही तरह की मुसीबतों से घिरा किसान हमेशा नुकसान झेलने पर मजबूर होता रहा है। यही वजह है कि युवाओं को गांव और खेती छोड़कर पलायन करने पर मजबूर होना पड़ता है. या फिर वो कोई दूसरा विकल्प तलाशने पर मजबूर होते हैं।
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जहाँ एक तरफ देश की मौजूदा सरकार किसानों के हित के साथ साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात करती है. हालांकि किसानों की स्थिति अभी भी उतनी बेहतर नहीं है. इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक, जहाँ देश में इस साल से पहले साल 1979-80 में GDP में सालाना गिरावट -5.2 दर्ज की गई थी. वहीं उस साल कृषि क्षेत्र में भी -12.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी. जबकी साल 1972-73 में GDP में 0.3 फीसदी, 1965-66 में GDP में 3.7 फीसदी, 1957-58 में 1.2 फीसदी अर्थव्यवस्था रफ्तार में कृषि क्षेत्र में यह गिरावट -5 फीसदी, -11 फीसदी व -4.5 फीसदी रही. हालांकि इस साल आए GDP के आंकड़ों में देश में पहली बार मंदी के दौर में भी कृषि सक्रियता सबसे ऊपर है.
जहां इस बार देश में कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल की तुलना में गेहूं, चना और अन्य रबी खाद्यान्नों का उत्पादन 151.72 मिलियन टन रहने का अनुमान है. वहीं पिछले साल की तुलना में ये आंकड़ा 5.6% ज्यादा है. जिसमें तिलहन (मुख्य रूप से सरसों) का उत्पादन 3.2% तक गिरकर 10.49% मिलियन टन गया. वहीं रबी बागवानी फसलों जैसे की आम, अंगूर, तरबूज, सेम, जीरा, प्याज, टमाटर में काफी वृद्धि देखने को मिली है. जहां कृषि क्षेत्र में पशुधन उत्पाद 29%, वानिकी और मत्स्य पालन 15% तक आता है. वहीं बाकी फल और सब्जियों में कृषि सकल उत्पाद लगभग 56% है. वहीं साल 2019-20 में देश की अर्थ व्यवस्था में कृषि का कुल शेयर 14.6 फीसदी था.
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हर इंसान जानता है कि हमारा देश कृषि प्रधान देश है. ऐसे में जहां लॉकडाउन और कोरोना के दौर में मंदी के चलते देश की स्थिति काफी खराब है. वहीं आने वाले दिनों में कृषि क्षेत्र में ये रफ्तार 4.5 फीसदी हो सकती है. जिसकी एक मुख्य वजह इस बार मॉनसून की बारिश भी है. जिससे किसानों को बार-बार सिंचाई से बचना पड़ा है. वहीं अन्य क्षेत्रों में कृषि अपनी बेहतर स्थिति में है.
ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि, जब देश में मौजूदा हालात में किसान और उनकी मेहनत देश को संभाले है तो क्या सरकार और उनके द्वारा बताए जा रहे किसान हितैषी वादे वाकई में किसानों के हित में है या नहीं?
Writer : Producer & Anchor – शुभ शुक्ला
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